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'धूप लिफाफे में' का विमोचन




बाबूजी के गीत संग्रह धूप लिफाफे में का विमोचन 22 जून को दोपहर 2 बजे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में हुआ। इस किताब के विमोचन के मौके पर जाने माने समालोचक मैनेजर पांडे, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक मधुकर उपाध्याय, प्रख्यात भाषाविद् हेमंत जोशी, जाने माने कवि एवं चित्रकार विज्ञान व्रत, साहित्यकार अनिल जोशी एवं सामाजिक कार्यकर्ता चैतन्य प्रकाश मौजूद रहे। साथ ही दर्शक दीर्घा में साहित्य और पत्रकारिता जगत के सजग प्रहरी मौजूद रहे....

-विवेक सत्य मित्रम्

कहां है वीथिका जमदग्नि की
शत अश्वमेधों की यही धरती
जहां से चक्रमण करती हुई
गंगा पुनः उत्तर को चलती है
मगर थोड़ी-सी सांस लेती है
जहां 'धनुर्वेद का मर्मज्ञ'
फरसा हाथ लेकर
काल-गति से दौड़ता है।
वहीं पर द्रोण प्रत्यंचा संभाले
वाण से पाताल-जल भी फोड़ता है।
वहीं पर ध्यानावस्थित इक 'बटुक'
'बैकुंठ' का करता सृजन है,
जो अपना प्राण प्रण संकल्प है
तन मन है, पूरा धन है,
हमारी आस्था श्रद्धा जिसे करती नमन है।
उसी की अर्चना में
धाम की महिमा सुनाता हूं
उसी श्री नाम की गरिमा गिनाता हूं,
चलो प्रासाद में खोजें कोई कुबेर
जहां पर एक शिल्पी
मौन तप की साधना में रत
सृजन की मोरपंखी तूलिका से
चिरंतन संस्कृति के कोटरों में
इन्द्रधनुषी कल्पना के रंग
इतना भर रहा है
हमारी प्रकृति की संवेदना
होकर तरंगित ढूंढती है ललित लहरों को,
हमारा विरल-विह्वल मन
हिरन-सा ढूंढता है गंध कस्तूरी,
यहीं से बालुका पर
दौड़ता-सा वह हांफता
'मतसा' पहुंचता है
वहीं पर आम्रकुंजों में
तृषा की 'नीलकंठी'
भोजपत्रों पर प्रणय के गीत लिखती है
'अरे पूरब के परदेसी
तू आ जा...कामरुपों की नजर से बच
तू मेरी भंगिमा का भाव पढ़
बोल वह भाषा कि
भारत के हृदय के सिन्धु में
निरंतर चल रहा मंथन',
हमारी आंख खुलती या नहीं खुलती-
हमें लगता हमारा कवि अकेले
पी रहा होता है नीला विष
सुधा का कुम्भ हमको कर समर्पित
हमें बस कुम्भ का अमृत पता है।
जो सत्साहित्य के संपत्ति की गठरी
किसी दधीचि की ठठरी
जिसे ले हम 'किरातों की नदी' में
'चन्द्रमधु' स्नान करके
अमरफल का पान करके
एक आदिम स्वर्ग में है वास करते
सहस्त्रार्जुन सरीखा पीढ़ियों का नाश करते
एक इच्छाधेनु खूंटे से बंधी है-
हमारी शून्यता-
साहित्य के लालित्य से कैसे भरेगी?
मनीषी के हृदय में
त्रासदी की लौ भभकती है
पता है? क्रौंच-वध का तीर
किसके जिस्म को
छलनी किया है ? वही आराध्य मेरा।
विश्वामित्र ने
विश्वासपूर्वक कुछ गढ़ा था
जहां कुछ पीढ़ियों ने कुछ
औ' किसी ने कुछ का कुछ पढ़ा था।
हमारी गहन से होती गहनतम रिक्तियों में
हमारी सघन से होती सघनतम वृत्तियों में
विरल-सा प्रेरणा का
आज किंचित पारदर्शी अक्स उभरता है,
हमारी जिंदगी में
इन्द्रधनुषी रंग निश्चित जो भी भरता है
वही मानव, महामानव
नया भारत हृदय में पालता है।
उसी के नाम अक्षत-पुष्प लेकर हम खड़े हैं
चलाकर चल दिया उसने
उसी संकल्प पर अनवरत चलते रहेंगे।
एक छोटी वर्तिका में
सूर्य की आभा लिए जलते रहेंगे।
वही कुबेर का प्रण था तो उसके हम हैं अटल प्रण,
चलें हम उस मनीषी का करें
हर बार अभिनमन।

नमन सौ-सौ बार तुमको



संजय कृष्ण

(संजय ज़मानियां के रहने वाले हैं. इस समय रांची में दैनिक जागरण अखबार में काम कर रहे हैं.)

डॉ.
शुकदेव सिंह को गए सितंबर में एक साल पूरा हो जाएगा। डॉ. सिंह का जाना सिर्फ संत साहित्य के एक अध्येता का जाना भर नहीं है, बल्कि एक परंपरा का अवसान है, उस परंपरा का, जिसने कबीर की बोली-बानी को जीवन भर समझने-समझाने का प्रयास किया, जिसका जीवन कबीर को समर्पित हो गया था। ऐसे कबीर साधक का जाना सचमुच एक बड़ी क्षति है जिसकी भरपाई निकट भविष्य में संभव नहीं दिखती।
उनका पूरा जीवन कबीर के अध्ययन-मनन को समर्पित था। इधर रैदास और रामानंद पर काफी काम किया था, लेकिन पूरे संत साहित्य को लेकर उनकी दृष्टि नितांत अलग थी। संत साहित्य को लेकर उनका यह भी ख्याल था कि पूरे इस साहित्य परंपरा, संघर्ष और परिवर्तनकामी चेतना पर तुलसी अकेले भारी पड़ गए। कबीर पर उनका अध्ययन तो विलक्षण था ही, कबीर की भाषा को लेकर उनकी व्याख्या एक नए वितान की रचना करती है। शुक्ल की ही तरह कबीर की भाषा को वे खिच़डी नहीं मानते थे, भाषा तो कबीर का हथियार थी। जब उनके कबीर पर अध्ययन को देखता हूं और इधर के कई लेखकों की कबीर पर किताबों को पलटता हूं तो उनकी गहराई का एहसास होता है। ऐसा कहना उन लेखकों को कमतर आंकना नहीं है बल्कि कबीर को लेकर शुकदेव सिंह की बुनियादी समझ में कितना अंतर था, कितनी मौलिकता थी, यह देखना है। उनकी धीर-गंभीर किताबों को पढ़िए और शुकदेव सिंह का कबीर पर किताब की कौन कहे, कोई लेख उठा लीजिए,....दोनों का फर्क महसूस हो जाता है। यह भी अनुभव होगा कि कबीर से उनका परिचय केवल 'सबद' के स्तर पर नहीं था, वे 'सबद' के पीछे के अर्थ और अर्थ के भीतर छिपे मर्म को देखते थे। यह देखने की कला उन्हें कबीर से ही मिली थी, इसीलिए वे आंखन देखी की कहा करते थे, सुनने में उनका कोई विश्वास नहीं था। गद्य उनका इठना गठा हुआ रहता कि एक बार शुरु हो जाए तो अंत करके छो़डना ही संभव हो पाता। चमत्कृत कर देने वाली उनकी भाषा बहते नीर के समान है। कबीर की तरह शास्त्र से उनका दुराव नहीं था, लेकिन बनारस में रहकर शास्त्रीयता के चक्कर में वे कभी नहीं पड़े। सहजता तो जैसी उनकी सहचरी हो। जब भी उनके निवास पर जाता घंटे से पहले निकलना संभव नहीं हो पाता। घंटों कबीर की बानी के रहस्य का भेदन करते, उनकी भाषा की बारीकियों, जमीन से जुड़े प्रतीकों के अनूठे प्रयोग को समझाते-बतियाते। कहते कबीर ऐसे आदमी थे जिन्होंने अपनी कविताई के लिए शास्त्रों से उपमा लेने की जरुरत नहीं थी, जिस काम को वे करते थे यानी कपड़े की बुनाई के औजारों को हथियारों की तरह कविता में प्रयोग करते। 'काहे का ताना काहे बाना' में देखें तो इस अनूठे प्रयोग से कबीर की भाषिक ऊंचाई का बोध होता है। उनका मानना था कि साधु संस्कृति को समझना 'शब्द' और 'पद' का अंतर जानना, भिक्षाजीवी साधुता के समांतर कर्मजीवी साधुता का रहस्य जानना साधारण काम नहीं है, घर पर किताब के पन्ने उलटकर कबीर पर नहीं लिखा जा सकता। उनके लिए निरक्षर समाधि की आवश्यकता है। वह यह भी मानते थे कि व्याकरणबद्ध भाषा में कबीर को नहीं लिखा जा सकता, उसके लिए उलटी बानी थी, मेघा में आगम-निगम के पार यात्रा जरूरी है।
गुजरात दंगे के बाद मोरारी बापू ने उन्हें गुजरात देखने के लिए बुलाया, वे गए। आने के बाद उन्होंने गुजरात पर टिप्पणी की, इस टिप्पणी से धर्मनिरपेक्षता के ध्वजवाहक नाराज हो गए। पर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा। सच-सच कहने की कीमत वे जानते थे। वैसे ये वही लोग हैं, जो गुजरात की घटना पर चुप्पी साध लेते हैं। इनकी स्याही चुक जाती है। इस घटना पर जिसमें वामपंथियों ने कानून को हाथ में लेकर और वहां की पुलिस से मिलकर सैकड़ों किसानों की हत्या कर दी। सारे के सारे लेखक संगठन इस घटना पर चुप्पी साधे हुए हैं। मुंह खोलते भी हैं तो किसानों को ही दोषी बताते हैं। कोलकाता मे लेखकों का एक संगठन माकपा के पक्ष में रैली निकालता है। महाश्वेता देवी अकेले वाम से लड़ती हैं। जाहिर है, इनकी धर्मनिरपेक्षता कितनी खोखली, दोगली है। हालांकि गाहे-ब-गाहे इसका प्रमाण मिलता ही रहता है। मकबूल फिदा हुसैन को लेकर इनका नजरिया देख सकते हैं। उस बड़े कलाकार ने कभी भारत मां का नंगा चित्र बनाया, कभी सरस्वती का। जब अपनी मां की तस्वीर बनानी हुई तो उन्होंने पूरी शालीनता बरती। जब हुसैन के इस कृत्य का विरोध होता है तो 'कला की अभिव्यक्ति' आड़े आ जाती है और इस स्वतंत्रता के पैरोकार सड़क पर आ जाते हैं। इनके ऐसे चरित्र को लेकर शुकदेव सिंह का ऐसे लोगों से न कोई लगाव था न कोई दुराव। न दोस्ती न बैर। अलबत्ता जो देखा, जो समझा उसे डंके की चोट पर लिखा। बुरा लगे तो लगे। वे मंच और मचान के आदमी नहीं थे, कि कहां क्या बोलना है, कौन-सा शिगूफा किस मंच से छोड़ना है। वे विचारधारा के गुलाम नहीं थे, विचारों की दुनिया के आदमी थेष वे लिजलिजी जमीन पर नहीं टिके थे। उनके पास परंपरा की भरी-पूरी थाती थी। एक मजबूत जमीन थी। परंपरा उनके लिए घृणा या तिरस्कार की वस्तु नहीं थी।
पिछले एक दशक से वे एक किस्म की जिंदगी जी रहे थे। बीमारी से लाचार थे। उनकी विवशता और बेचैनी को देखकर उनकी प्यारा कुत्ता तो कभी-कभी रात भर उन्हीं के पास रहता, उन्हें एक पल के लिए भी छोड़ता नहीं। बाद में इस कुत्ते ने उनका साथ छोड़ दिया। उनके घर जाता तो, वही जर्मन शेफर्ड कुत्ता अगवानी करता। इस दौरान उन्हें मृत्यु नजदीक आती दिखाई देती, लेकिन कुछ समय बाद मृत्यु किसी ओट में छिप जाती। जब डॉ. शिवप्रसाद सिंह का निधन हुआ तो उन्होंने एक बड़ा लेख लिखा, 'डॉ. शिवप्रसाद सिंह का निधन और मेरे अंतिम दिन'। उस समय भी उन्हें अपनी मृत्यु की आहट सुनाई दी। उनकी पहली पत्नी बीमारी की खबर पाकर बनारस गईं, कुछ दिन रही, वे स्वस्थ हो गए, फिर वे गांव चली आईं। विधि का कैसा विधान है कि उनकी मृत्यु हुई भी तो बीमारी से नहीं, श्वास नली में भोजन के फंस जाने से। इस बीच भी उनका लिखना जारी था, रफ्तार कम थी, लेकिन धार वही थी। राजकमल से 'रैदास' पर किताब भी इसी बीच आई और 'भए कबीर कबीर' का प्रकाशन भी इसी दौरान हुआ। संस्मरणों की किताब भी इसी दशक में आई। अब वे नहीं हैं, लेकिन यादों और किताबों में तो मिलेंगे ही...।

ताकि सनद रहे...

पुनश्च निरंतर साहित्य-सृजन के माध्यम से ज़मानियाँ के जिन कवियों-लेखकों और साहित्यकारों (जिनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं) ने ज़मानियाँ का नाम रोशन किया है अथवा अभी भी कर रहे हैं उनकी एक संक्षिप्त सूची द्रष्टव्य हैः-

  • स्व. इंतज़ार अहमद 'क़ासिद'- ज़मानियाँ
  • स्व. शीतल प्रसाद उपाध्याय- गहमर
  • स्व. भोलानाथ 'गहमरी'- गहमर
  • स्व. वाराणसी प्रसाद त्रिवेदी- बेटाबर
  • स्व. कुबेर नाथ राय- मतसा
  • स्व. डॉ शुकदेव सिंह- जीवपुर
  • स्व, डॉ शिवमंगल राय- डेढ़गांवा
  • स्व. ऋषिमुनि तिवारी- बघरी
  • स्व. डॉ बृजमोहन चतुर्वेदी- देवरिया
  • स्व. केशव प्रसाद सिंह- ढढ़नी
  • स्व. कतवारु लाल 'मुग्ध'-ढढ़नी
  • स्व. कुमार संभव- अन्हारीपुर
  • आनन्द सन्धिदूत- गहमर
  • गौरीशंकर मिश्र- रेवतीपुर
  • रामवचन शास्त्री 'अजोर'- नवली
  • चन्द्रदेव शर्मा 'नि:शेष'- असाँव
  • डॉ सरजू तिवारी- लोटवाँ
  • रामउपदेश सिंह-अभईपुर
  • नन्दाजी गहमरी- गहमर
  • संजय कृष्ण- ज़मानियाँ
  • हरिवंश पाठक 'गुमनाम'- बेटाबर
  • वंश नारायण 'मनज'- गगरन
  • अनन्तदेव पाण्डेय-आलमगंज
  • डॉ वेद प्रकाश पाण्डेय- बड़ौरा
  • डॉ गौरीशंकर राय- सोनहरियाँ
  • राजेंद्र सिंह- बरूइन
  • रहमन उसियावी- उसियाँ
  • वकार फ़रीदी- ज़मानियाँ
  • विनय राय 'बबुरंग'- डेढ़गावाँ
  • नीरेंद्र 'सारंग'-हरपुर
  • कुमार शैलेन्द्र- किशुनीपुर
  • गणेश उपाध्याय 'गोवर'- करहिया
  • मिथिलेश 'गहमरी'- गहमर
  • उपेन्द्र सिंह 'फज़ीहत'- गहमर
  • अक्षय कुमार पाण्डेय- रेवतीपुर
  • डॉ अजित कुमार राय- नगसर
  • उर्मिलेश- ढ़ढ़नी
  • विष्णुदत्त 'विलीन'- गहमर
  • डॉ इकबाल- बेटाबर
  • यूनुस सोज़-ज़मानियाँ
  • कमलेश पाण्डेय 'पुष्प'- रइमला
  • राजकुमार-हरपुर
  • प्रदीप 'पुष्कल'- गहमर
  • प्रवीण कुमार 'गौरव'- भदौरा
  • गोपाल- आलमगंज
  • शशिशेखर- रामपुर
  • रवीश नियाज़ी- ज़मानियाँ

कुछ समस्याएं

बेशक ज़मानियाँ के स्वनामधन्य स्वतंत्रता सेनानियों, समाजसेवियों एवं देश सेवा में समर्पित जवानों, आईएएस-आईपीएस अफसरों, न्यायाधीशों, वैज्ञानिकों, प्रशासकों ने भी ज़मानियाँ का गौरव बढ़ाया है जिनकी फेहरिस्त लम्बी है, जिनका उल्लेख आने वाले समय में संभव है...मगर अफसोस...वर्तमान में ज़मानियाँ की तस्वीर धुँधली दिखाई देती है जिसके लिए हम सभी किसी न किसी रूप में जिम्मेदार हैं....हर आम...हर ख़ास...पत्रकार-लेखक, जनप्रतिनिधि, विधायक, सांसद, प्रशासक, अधिकारी-कर्मचारी.....। संभवत: यही कारण है कि विकास की तेज़ रफ़्तार में आज़ादी के 60 सालों बाद भी लुढ़कता हुआ नज़र आता है। अपेक्षा है कि 'ज़मानियाँ' को जल्द से जल्द जिले का दर्जा मिले...मगर हम गूँगे हैं और सरकार बहरी, संवेदनहीन..जिन्हें हमारे वोटों के बूते हम पर ही राज करना है। तहसील ज़मानियाँ से जिला ज़मानियाँ तक की यात्रा के मार्ग में कुछ बड़ी बाधाएं हैं जो शर्मनाक भी हैं....हमें जरुरत है बुलंद आवाज़ की...दृढ़इच्छाशक्ति की जो ज़मानियाँ की रफ़्तार को ज़माने से जोड़ सके। ज़मानियाँ की बदहाली से जो मर्माहत हैं...जो अपनी धरती से थोड़ा भी सरोकार रखते हैं उनके लिए प्रस्तुत हैं एक बानगी इस इलाके की उन बुनियादी समस्याओं की जिनके अभाव में ज़मानियाँ के विकास का चक्का जाम हैः-

  • गंगा पर पक्का पुल
  • मुंसिफ कोर्ट
  • अग्निशमन केंद्र
  • सुलभ शौचालय
  • स्टेडियम
  • पार्क
  • पुस्तकालय
  • विद्युत शवदाह गृह
  • राजकीय अतिथि गृह
  • राजकीय रोडवेज बस स्टैंड
  • सामुदायिक विकास केंद्र
  • नियमित विद्युत आपूर्ति
  • औद्योगिक इकाइयाँ
  • रोज़गार सूचना केंद्र
  • पर्यटन केंद्र
  • गंगा किनारे पक्के घाट
  • राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय
  • हाट एवं सब्ज़ी मंडी
जरुरत है ज़मानियाँ की ज़मीन से जुड़े संवेदनशील लोगों की...ज़मानियाँ को ज़माने की नज़रों में जगह दिलाने की....मन-वचन-कर्म से तन-मन-धन से !...ज़मानियाँ के प्रति यदि आपके भीतर भी संवेदना है तो स्वागत है आपका...आप जहाँ हैं वहीं से कुछ कर दिखायें....

एक नज़र इधर भी

आइए बिना किसी पूर्वाग्रह के कुछ उन दृश्यों, चित्रों और रंगों पर गौर करें....इनके अस्तित्व को अपने ज़ेहन में स्थान दें और सबसे ज़रुरी यह है कि इसकी रफ़्तार में अपनी भूमिका सुनिश्चित करें। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली महाविभूतियाँ जिनका राष्ट्र की सेवा में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, संक्षेप में उनका उल्लेख इसप्रकार है जिस पर विशद् जानकारी ज़मानियाँ से प्रकाशित होने वाली अनियतकालीन पत्रिका जमदग्नि वीथिका (संपादक-संजय कृष्ण) में उपलब्ध है-

महत्वपूर्ण स्थल:

  • भगवान परशुराम मंदिर (हरपुर)
  • माँ कामाख्या मंदिर (गहमर)
  • माँ रेणुका मंदिर (गोहदाँ)
  • माँ भगवती मंदिर (रेवतीपुर)
  • जमदग्नि आश्रम (ज़मानियाँ)
  • चण्डीमाई मंदिर (ढ़ढ़नी)
  • सम्राट अशोक स्तंभ (लटिया)
  • कीनाराम मठ (देवल)
  • नल-दमयन्ती सरोवर (दिलदारनगर)
  • बौद्ध प्रतिमा (अरंगी)
  • मानवधर्म आश्रम (वयेपुर देवकली)
  • बक्कस बाबा (गहमर)
  • सिद्धिबाबा (सोनहरिया)
  • नेवाजू बाबा (जीवपुर)

महत्वपूर्ण पुस्तकें और पत्रिकाएं:

· गाज़ीपुर संवाद- डॉ विवेकी राय
· गाज़ीपुर का इतिहास- कृष्णानन्द राय
· गाज़ीपुर की ऐतिहासिक धरा- डॉ सरजू तिवारी
· जमदग्नि पंचतीर्थ महात्म्य- पं. रामनारायण मिश्र
· जमदग्नि की धरती- मार्कण्डेय राय
· सीकरवार राजपूत- नन्दा जी
· जमदग्नि वीथिका- सं. संजय कृष्ण
· जयन्तिका- सं. डॉ सरजू तिवारी
· प्रवर्तक भारत- सं. आनन्द सिंह मौर्य
· कमसार टाइम्स- सं. राजकुमार
महत्वपूर्ण लेख:
· कर्मनाशा की हार- डॉ शिवप्रसाद सिंह
· चंडीथान- कुबेरनाथ राय
· मदनकाशी- डॉ शिवप्रसाद सिंह
· भगवान परशुराम और उनकी जमदग्निपुरी- कुमार शैलेन्द्र

महाविभूतियाँ:
· क्रांतिवीर बाबू मेघर सिंह (गहमर)
· सांसद विश्वनाथ सिंह (गहमर)
· साहित्यकार गोपालराम (गहमर)
· साहित्यकार डॉ. कपिलदेव द्विवेदी (गहमर)
· स्वतंत्रता सेनानी उमाशंकर उपाध्याय (गदाईपुर)
· प्रख्यात सितारवादक पं. रविशंकर (ढ़ढ़नी)
· ब्लिट्ज़ के संपादक हारुन रशीद खाँ (उसियाँ)
· फिल्म अभिनेता नज़ीर हुसैन (उसियाँ)
· विद्वान डॉ किशोरीलाल गुप्त (ज़मानियाँ)
· ध्रुपद गायक शिवप्रसाद तिवारी (दाउदपुर)
· पत्रकार रामचरित्र राय ( बेटाबर)
· अस्थि विशेषज्ञ पोतन साह (बेटाबर)
· प्रिंसिपल हरिद्वार उपाध्याय (गहमर)
· न्यायाधीश जे एन राय (सोहवल)
· बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन सिराजुल हक खाँ (देवैथां)
· पेंटर रामदुलार (सैदाबाद)
· वॉयस ऑफ अमेरिका में पत्रकार हुमा खान (उसियाँ)
· अधिवक्ता-साहित्यकार भागवत मिश्र (नवली)
· पहलवान रामजनम राय (रेवतीपुर)
· समाजसेवी-साहित्यकार लौटू सिंह गौतम (मेदिनीपुर)
· फिल्म अभिनेता अंजन श्रीवास्तव (गहमर)
· ललित निबंधकार कुबेरनाथ राय (मतसा)
· कबीर साहित्य के पुरोधा डॉ शुकदेव सिंह (जीवपुर)
· संस्कृतज्ञ पं. रामगोविन्द त्रिवेदी (कूसीं)
· पार्श्व गायक सोनू निगम (ज़मानियाँ)

(ढेर सारे नाम अभी छूट गए हैं जिनका उल्लेख फिर कभी.....)

ज़मानियाँ: एक विहंगम दृष्टि

(ज़माने की तेज़ रफ़्तार में भी ज़मानियाँ पर कुछ उड़ती नज़रें देखकर लगा कि उड़ती नज़र को टिकाने के लिए हमें अतीत के झरोखों में झाँकना ही होगा जिससे ज़मानियाँ के धार्मिक, पौराणिक, भौगोलिक, पुरातात्विक, सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक स्वरूप को देखकर उसका वर्तमान संदर्भों में सही मूल्यांकन किया जाय। ज़मानियाँ ज़माने की नज़रों में ज़माने से कितना आगे या कितना पीछे है यह तो ज़माना ही तय करेगा मगर हम ज़मानियाँ के कुछ तथ्यों और सूचनाओं को एकमुश्त शब्दचित्रों के माध्यम से परोसने के फर्ज़ का निर्वाह कर सकते हैं।)


पूर्वी उत्तर प्रदेश में अफ़ीम फैक्ट्री और अफ़ीम की खेती के लिए मशहूर गाज़ीपुर जनपद में ज़मानियाँ एक ऐसी तहसील है जो गंगा और कर्मनाशा नदियों के बीच अवस्थित है। इसे न तो गाज़ीपुर से असंपृक्त किया जा सकता है और ना ही वाराणसी-चंदौली से। क्योंकि उसका पूर्वोत्तर भाग (महाइच परगना) प्राचीन भू-अभिलेखों और मानचित्रों में ज़मानियाँ का ही एक अंग रहा है। मुहम्मदाबाद तहसील को भी इससे अलग नहीं देखा जा सकता क्योंकि इसके भी कई गांव पहले से ही ज़मानियाँ परगना के अंग रहे। यदि लोकसभाई क्षेत्र के हिसाब से देखें तो इसकी व्यापकता बलिया जनपद की सीमा को स्पर्श करती है। कर्मनाशा के इस पार ज़मानियाँ और कर्मनाशा के उस पार बिहार राज्य के दो जनपद भोजपुर-रोहतास। यानी पूर्ण रूप से भोजपुरी अंचल। समतल एवं उपजाऊ ज़मीन। अपनी नैसर्गिकता के कारण इस भूमि ने देश-विदेश की महाविभूतियों को भी अपनी ओर भरसक आकृष्ट किया है।
मुगलसराय-हावड़ा रेलमार्ग पर लगभग 40 किलोमीटर पूरब....ज़मानियाँ रेलवे स्टेशन...यहीं से जनपद गाज़ीपुर की सीमा प्रारंभ होती है। लगभग 30 किमी परिवृत्त में इसका विस्तार....लेकिन ख़ास तौर पर ज़मानियाँ, ज़मानियाँ नगरपालिका (स्टेशन और क़स्बा) दो भागों में विभक्त....लगभग 8 किमी की लंबाई में। यहाँ की कुल आबादी लगभग 60 हज़ार....कुल मतदाता लगभग 25 हज़ार...औद्योगिक विकास के नाम पर शून्य है। फिर भी ज़मानियाँ विकास की असीम संभावनाओं को समेटे हुए है। जहाँ एक गाँव ऐसा भी है जिसे राष्ट्र की सेवा में सिर्फ अग्रणी ही नहीं माना जाता वरन उसे एशिया का सबसे बड़ा गाँव होने का गौरव प्राप्त है.....और वह गाँव है गहमर। बताते चलें कि ज़मानियाँ ज़िला बना की पुरज़ोर माँग वर्षों से सरकार के ठंडे बस्ते में पड़ी है। निश्चित है ज़माने की इस तेज़ रफ़्तार में हमें ढूँढना ही होगा कि आख़िर ज़मानियाँ है कहाँ। आइए ज़मानियाँ के स्वर्णिम अतीत में एक टेलिस्कोपिक दृष्टि डालें....जहाँ प्राचीनकाल से लेकर अब तक बहुतेरे कैलेडिस्कोपिक दृश्य बनते-बिगड़ते रहे हैं...फ़िलहाल ज़मानियाँ के उसी अतीत के सिक्के के एक पहलू पर संक्षिप्त नज़र डालना ज़रुरी है।

गंगा तट पर अवस्थित अत्यंत प्राचीन नगर जमदग्निपुरी...जहाँ माता रेणुका की कोंख से पाँचवें पुत्र के रूप में भगवान परशुराम का जन्म हुआ...(कल्याणके एक पुराने अंक के अनुसार)..जी हाँ, यही है भगवान परशुराम जन्मभूमि....(हाँलाकि उनके जन्म-स्थान को लेकर विद्वानों में मतैक्य नहीं है)...उल्लेखनीय है कि निकटवर्ती राजा गाधि की नगरी गाधिपुरी में महर्षि विश्वामित्र का जन्म हुआ था। अपनी प्रबल आस्था के चलते सकलडीहा के राजा वत्स सिंह ने हरपुर नामक स्थान में लगभग 250 वर्षों पूर्व भगवान परशुराम का एक मंदिर स्थापित करवाया जहाँ आज भी अक्षय तृतीया को विशाल जनसमुदाय परशुराम जयंती महोत्सव में हिस्सा लेता है क्योंकि ज़मानियाँ को एक पवित्र तीर्थ-स्थान की मान्यता प्राप्त है।

  1. ग़ौरतलब है कि गंगोत्री से गंगासागर तक के बीच सिर्फ ज़मानियाँ में ही गंगा का जलप्रवाह सीधे उत्तर की ओर है। चक्रमण करती हुई गंगा जिस स्थान से उत्तराभिमुख होती हैं उस स्थान को चक्का बांध कहा जाता है। एकल उत्तर वाहिनी गंगा का एक अलग धार्मिक महत्व माना जाता है।
  2. बौद्ध धर्मावलंबी सम्राट अशोक का शिलालेख युक्त स्तंभ ज़मानियाँ के लठिया ग्राम में स्थित है। इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं की दृष्टि में इस स्तंभ का उतना ही महत्व है जितना सारनाथ (वाराणसी) के अशोक स्तंभ का। इसी स्थान पर प्रति वर्ष 2 फरवरी को लाखों देशी-विदेशी बौद्ध-मतावलंबियों की उपस्थिति में लठिया महोत्सव का आयोजन होता है जो कई दिनों तक चलता है।
  3. एक कालखंड ऐसा भी था जब गहरवार वंश के प्रतापी राजा मदनचंद ने इसी जमदग्निपुरी को अपनी अस्थाई राजधानी बनाया था....जिसे बनारस के समतुल्य खड़ा करने की दिशा में राजा ने इसका नामकरण मदन बनारस कर दिया। कुछ लोगों की मान्यता है कि चेरि राजाओं ने इसका नाम मदन बनारस रखा। मदनपुरा नाम का गाँव बिल्कुल ज़मानियाँ से सटा हुआ है। मदन बनारस जो ज़मानियाँ का पुराना नाम है वह यहाँ के भू-राजस्व अभिलेखों में अब भी मिलता है।
  4. बाबरनामाके अनुसार अपनी विजययात्राओं के दौरान बाबर जमदग्निपुरी अर्थात् मदन बनारस के गंगा किनारे अपनी सैनिक छावनी डाले हुए था। उस समय ज़मानियाँ ज़मानियाँनहीं था।
  5. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी ज़मानियाँ-गाज़ीपुर अंचल का भ्रमण किया था और वह यहाँ के पराक्रमी और बहादुर लोगों से मिला था। उसे लगा कि यह पराक्रमी और शूरवीरों की धरती है...इसलिए उसने इसका अपनी भाषा में नामकरण कर दिया...मतलब चेन-चू....अर्थात् यही गाज़ीपुर-ज़मानियाँ।
  6. चंद्रकांताऔर भूतनाथजैसे तिलिस्मी साहित्य के रचनाकार बाबू देवकीनन्दन खत्री की जन्म-भूमि ज़मानियाँ ही है। जो बाद में संभवत: अन्यत्र चले गए। जिन तिलिस्मी सुरंगों की चर्चा उनकी पुस्तक में है वे तिलिस्मी सुरंगें ज़मानियाँ से होकर कमालपुर होते हुए विजयगढ़ के किले तक जाती थीं।
  7. भारत प्रसिद्ध माँ कामाख्या मंदिर इसी अंचल के ग्राम गहमर में स्थित है जिसे फतेहपुर सीकरी से मुग़लों द्वारा निर्वासित सीकरवार राजपूतों ने स्थापित कराया था....जहाँ प्रत्येक नवरात्र और सावन महीने में अभूतपूर्व धार्मिक आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ता है। उक्त स्थान सरकार के पर्यटन नक्शे पर दर्ज है।
  8. ज़मानियाँ क़स्बे में उदासीन पंथ का एक अखाड़ा आज भी मौजूद है जहाँ सिख पंथ के गुरु गोविंदसिंह की पत्नी ने गुरुमुखी लिपि में एक हुक्मनामा लिख रखा था। हुक्मनामा आज तक सुरक्षित है।
  9. ज़मानियाँ अंचल का ग्राम बारा मुग़ल बादशाह हुमायूँ और शेरशाह के ऐतिहासिक चौसा युद्ध का साक्षी है जहाँ शेरशाह ने हुमायूँ को पराजित कर दिया था और हुमायूँ भाग खड़ा हुआ।
  10. अलीकुल जमन, जो मुग़लों का सिपहसालार था वह तत्कालीन मदन बनारस (जमदग्निपुरी) में बस गया। बाद में इसी मदन बनारस का नाम बदल कर ज़मन खाँ के नाम पर ज़मानियाँ कर दिया गया।
  11. ज़मानियाँ क्षेत्र का दिलदारनगर गाँव पौराणिक किंवदन्तियाँ समेटे है जहाँ नल-दमयन्ती का एक विशाल तालाब और कोट (ऊंचा टीला) आज तक सुरक्षित है।
  12. लॉर्ड कार्नवालिस ने ज़मानियाँ के ठीक सामने गंगा के उस पार जीवन की अंतिम साँस ली। उस स्थान पर लॉर्ड कार्नवालिस का निर्मित मक़बरा आज भी पर्यटकों के लिए कौतूहल का विषय है।
  13. स्वामी विवेकानन्द इसी गंगा तट पर अवस्थित महान संत पवहारी बाबा के आश्रम में पधारे थे। शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के पूर्व उन्होंने उस महान संत का आशीर्वाद प्राप्त किया था।
  14. विश्व कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर की साहित्य-सृजन यात्रा का एक अविस्मरणीय पड़ाव रहा है ज़मानियाँ-गाज़ीपुर...जहाँ वे ग़ुलाबों की ख़ुशबू से बंधे रहे काफी दिनों तक...और उन्होंने एक पुस्तक मानसीकी रचना कर डाली। गाज़ीपुर की स्मृतियाँ उनके मानस-पटल पर चिरस्थायी बन गईं।
  15. स्थानीय विद्वान पंडित रामनारायण मिश्र द्वारा संस्कृत में लिखी पुस्तक जमदग्नि पंच तीर्थ महात्म्य ज़मानियाँ के धार्मिक एवं सांस्कृतिक गौरव का एक संक्षिप्त दस्तावेज़ है। यह पुस्तक अत्यंत लोकप्रिय हुई जिसका हिंदी अनुवाद जुनेदपुर निवासी पंडित राजनारायण शास्त्री ने किया।
  16. सइतापट्टी के नागा बाबा और चोचकपुर के मौनी बाबा का धाम ठीक ज़मानियाँ घाट के सामने पड़ता है। ये दोनों स्थान आज भी लोगों की श्रद्धा के केंद्र में हैं।
  17. संपूर्ण ज़मानियाँ क्षेत्र मुग़लकालीन धर्मांतरण से काफी प्रभावित रहा और इस्लाम क़बूल करने वालों की संख्या बढ़ी। परिणामस्वरूप एक क्षेत्र विशेष के जाति विशेष ने इस्लाम क़बूल कर अपने को मुसलमान घोषित कर लिया....उस क्षेत्र को कमसार कहा जाता है। इसी अवधि में नवाबों और ज़मींदार घरानों की भी उत्पत्ति हुई। ज़मानियाँ नगर के प्राचीन खंडहर इस बात के सबूत हैं।
  18. आज़ादी के तुरंत बाद गाज़ीपुर के लोकसभा सदस्य विश्वनाथ सिंह ने संसद में इस अंचल की ग़रीबी का चित्रण कर प्रधानमंत्री पं. नेहरु को भी भावुक कर दिया था।
  19. पवित्र गंगा के तट पर बसे इस प्राचीन नगर का बलुआघाट सदियों से जीवन की आखिरी सांस लेने वाले लाखों (प्रतिदिन दर्जनों) के बन्धु-बान्धवों के राम नाम सत्य है का मूक साक्षी है, साथ ही यह श्रावण मास में पूरे दिन और पूरी रात गंगाजल ले जाने वाले काँवरियों के बोल-बम की ध्वनि से गुंजायमान होता रहता है।
  20. साहित्यकार गुरुभक्त सिंह भक्तऔर कवि उस्मान की कर्मभूमि ज़मानियाँ उनके साहित्य-सृजन के लिए प्राण-वायु के समान रहा।
  21. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के लिए ज़मानियाँ का ग्राम कूसीं एक तीर्थस्थान से कम नहीं था क्योंकि वहाँ प्रख्यात संस्कृतज्ञ पं. रामगोविंद शास्त्री से उन्हें आशीर्वाद प्राप्त करना आवश्यक लगता था।
  22. गोपाल राम गहमरी को उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद का सिर्फ पूर्ववर्ती ही नहीं माना जाता बल्कि उन्हें जासूसी साहित्य के जनक के रूप में भी प्रतिष्टापित किया जाता है।
  23. ज़मानियाँ तहसील का ग्राम गहमर संपूर्ण भारत के लिए राष्ट्रीय गौरव का विषय सिर्फ इसलिए नहीं है कि यह एशिया का सबसे बड़ा गाँव है बल्कि इसलिए भी कि इस गाँव का राष्ट्र की सेवा में बराबरी करने वाला भारत का कोई दूसरा गाँव है ही नहीं।
  24. प्रख्यात सितारवादक पं. रविशंकर ज़मानियाँ (ढ़ढ़नी गाँव) का मूल संबंध एक कत्थक परिवार से रहा है।
  25. भोजपुरी फिल्मों को दिशा देने वाले महान अभिनेता नज़ीर हुसैन किसी परिचय के मोहताज़ नहीं, मगर बताना आवश्यक है कि फिल्मों में जाने के पूर्व उसिया के उस नौजवान ने सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज़ में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
  26. डॉ कपिलदेव द्विवेदी (गहमर) जिन्होंने लगभग 3 दर्जन पुस्तकें संस्कृत में लिखीं। वे गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। इन्हें भारत सरकार ने पद्म विभूषण सम्मान से अलंकृत किया।
  27. ज़मानियाँ से जुड़ी तहसील मुहम्मदाबाद और सैदपुर की महाविभूतियों यथा- संत शिवनारायण, स्वामी सहजानन्द सरस्वती, डॉ मुख्तार अंसारी, डॉ राही मासूम रज़ा और उप-राष्ट्रपति माननीय हामिद अंसारी पर भी हमें गर्व है।

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