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कहने को ज़मानियां का विद्युत उप-केंद्र 132 KW की क्षमता से युक्त है, मगर इसके द्वारा बिजली सप्लाई की खस्ताहाल व्यवस्था का अंदाजा कोई दूसरा नहीं लगा सकता। केवल भुक्तभोगी उपभोक्ता ही ज़मानियां में बिजली के कहर को अभिव्यक्त कर सकते हैं। ज़मानियां पावर स्टेशन से कब और कितनी विद्युत आपूर्ति होगी, यहां के किसी उपभोक्ता को नहीं मालूम। यहां तक कि स्थानीय जनप्रतिनिधि, जिलाधिकारी, उप-जिलाधिकारी अथवा संबंधित अन्य किसी भी अधिकारी का इनके ऊपर रंचमात्र का नियंत्रण नहीं है। रोजमर्रा का हाल यह है कि जरूरत होने पर बिजली उपलब्ध नहीं होती है। जाड़े के दिनों में सामान्यतः जब सभी लोग नींद की आगोश में होते हैं तो बिजली उपलब्ध रहती है। वही बिजली गर्मियों में आम आदमी को रात-रात भर जागने को मजबूर कर देती है। यह किसी को पता नहीं है कि आखिर इस बिजली विभाग का कौन माई-बाप है। बिजली विभाग बिजली कटौती के नाम पर गैर-जिम्मेदाराना तरीके से हमेशा किसी ऊपर के आदेश का हवाला देकर लोगों को शांत कर देते हैं। उल्लेखनीय है इस उप-केंद्र का एस.डी.ओ. और जूनियर इंजीनियर कई वर्षों से इस मुख्यालय से लापता हैं। पता चलता है कि वे ग़ाज़ीपुर शहर में प्रवास करते हैं। यहां स्टाफ की तो कमी है ही, ले देकर मात्र एक ही लाइनमैन है-'ओझा' ज़मानियां में बिजली का सारा दारोमदार इसी ओझा नामक प्राणी पर है। अवैध कंटिया कनेक्शन देने मे एक्सपर्ट ओझा अवैध कलेक्शन में हमेशा व्यस्त रहता है, जबकि सामान्य उपभोक्ता परेशान रहता है वैध पॉवर कनेक्शन को लेकर। कनेक्शन है तो बिल भुगतान करना ही पड़ेगा, आप बिजली का चाहे घंटे भर भी उपभोग न करें। कुल मिलाकर ज़मानियां तहसील पर अवस्थित इस पॉवर स्टेशन से 10 घंटे भी बिजली नहीं मिलती। वर्तमान माया सरकार में बिजली की हालत बद से बदतर हो गई है। क्या जनप्रतिनिधियों और जनपद के उच्च प्रशासनिक अधिकारियों का कोई नैतिक दायित्व बनता है कि ज़मानियां की जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए वे कोई उत्तरदायी कदम उठाएं ? ज़मानियां के पिछड़ेपन में बिजली विभाग की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

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