क्षितिज चूमो, उड़ो चिड़िया !

फक़त काग़ज़ के टुकड़ों पर
न कोने में सड़ो चिड़िया।
कभी गंदे इरादों के
न धोखे में पड़ो चिड़िया ।
हवा की सनसनी भी
गुनगुनी-सी धूप लाए तो,
खिड़कियां खोलकर रखना ।
सुभाषित मंत्रणाओं को,
सृजन-संवेदना बन-
आचमन करती जुड़ो चिड़िया ।
फुदकना क्या तुम्हें-
सोने की चमकीली लकीरों पर,
चहकती फाइलों में-
सिसकियां बेबस, अमीरों पर
खुला आकाश है सारा-
क्षितिज चूमो, उड़ो चिड़िया ।
मधुर चीं-चीं, नरम चोंचों को-
तुमुलावाज़ दे देना,
सजा सपने सुनहले-
पंख को परवाज़ दे देना ।
न ही दाएं, न ही बाएं
नहीं पीछे मुड़ो चिड़िया ।।

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