मीठे गीत रचें

जब-जब सोन चिरैया चहके-
बरगद मन डोले,
नई सदी जब परत-दर-परत-
गांठ-गांठ खोले।
ऐसी हवा चले चूल्हों की-
बुझती आग जले,
ऐसे पानी बहे खुशी के
अनगिन कुसुम खिलें ।
ऊंचे स्वप्न गढ़ें, नयनों से-
लम्बी नींद खुले,
दर्द बढ़े, जब हद से ज्यादा-
दर्द दवा हो ले ।
उर में जोश भरे हर पंछी-
नील गगन छू ले,
होश रहे, धरती मैया का-
कर्ज नहीं भूलें ।
उतना नशा चढ़े, यह जीवन-
सावन बन झूले,
दिशा झूमकर गाए, मौसम-
हंसकर गले मिलें ।
मीठे गीत रचें जिससे-
मानस के पाप धुलें,
पहली किरण लिखे सूरज-
फिर शामें नहीं ढलें ।
ओछी नागफनी पथ में-
जब फूलों- सी मचले,
आगे बढ़ते जाएं हमारे-
नंगे पांव भले।
रजवाड़ों के किस्से सुनकर-
शिकवे और गिले,
तीखे तेवर, वक्त बेरहम-
समतल करे किले ।

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