हज़ारों शब्द बाज़ारों में

सृजन के स्वप्न,
मेरी आंख में-
जब से उतर आए,
मेरा मन इंद्रधनुषी रंग बन-
आकाश लिखता है ।
प्रतीक्षा है नदी का जल
बहे वैदिक ऋचाओं- सी,
घड़ी की सूइयां सज-धज चलें-
सोलह कलाओं-सी,
समय की क्रूर मुट्ठी में
उम्मीदें जब बिखर जाएं,
मेरा तन कृष्णवंशी संग बन-
मधुमास लिखता है ।
हज़ारों शब्द बाजारों में-
ढूंढें अर्थ- बैशाखी,
उधारी कल्पना की शाख पर-
टिकते नहीं पाँखी,
शिखर छूने में आड़े-
आ रही हिमगिरि-हवाएं,
मेरा प्रण सूर्यवंशी ढंग बन-
इतिहास लिखता है ।
हवा होने की कीमत-
जानती होगी खुली खिड़की,
धुएं से, धुंध से छाने-
दिवस के रूप की तल्खी,
क्षितिज के छोर पर जब-
अग्निमालाएं धधक जाएं,
मेरा धन सोमवंशी अंग बन-
एहसास लिखता है ।

1 comments:

Sunder geet,bahut bahut swagat,aapki kalam manji hui hai bahut /apney barey me bataiye kuch.
sader,Dr.Bhoopendra singh
jeevansandarbh.blogspot.com

21 November 2010 at 13:23  

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