बेशक ज़मानियाँ के स्वनामधन्य स्वतंत्रता सेनानियों, समाजसेवियों एवं देश सेवा में समर्पित जवानों, आईएएस-आईपीएस अफसरों, न्यायाधीशों, वैज्ञानिकों, प्रशासकों ने भी ज़मानियाँ का गौरव बढ़ाया है जिनकी फेहरिस्त लम्बी है, जिनका उल्लेख आने वाले समय में संभव है...मगर अफसोस...वर्तमान में ज़मानियाँ की तस्वीर धुँधली दिखाई देती है जिसके लिए हम सभी किसी न किसी रूप में जिम्मेदार हैं....हर आम...हर ख़ास...पत्रकार-लेखक, जनप्रतिनिधि, विधायक, सांसद, प्रशासक, अधिकारी-कर्मचारी.....। संभवत: यही कारण है कि विकास की तेज़ रफ़्तार में आज़ादी के 60 सालों बाद भी लुढ़कता हुआ नज़र आता है। अपेक्षा है कि 'ज़मानियाँ' को जल्द से जल्द जिले का दर्जा मिले...मगर हम गूँगे हैं और सरकार बहरी, संवेदनहीन..जिन्हें हमारे वोटों के बूते हम पर ही राज करना है। तहसील ज़मानियाँ से जिला ज़मानियाँ तक की यात्रा के मार्ग में कुछ बड़ी बाधाएं हैं जो शर्मनाक भी हैं....हमें जरुरत है बुलंद आवाज़ की...दृढ़इच्छाशक्ति की जो ज़मानियाँ की रफ़्तार को ज़माने से जोड़ सके। ज़मानियाँ की बदहाली से जो मर्माहत हैं...जो अपनी धरती से थोड़ा भी सरोकार रखते हैं उनके लिए प्रस्तुत हैं एक बानगी इस इलाके की उन बुनियादी समस्याओं की जिनके अभाव में ज़मानियाँ के विकास का चक्का जाम हैः-
- गंगा पर पक्का पुल
- मुंसिफ कोर्ट
- अग्निशमन केंद्र
- सुलभ शौचालय
- स्टेडियम
- पार्क
- पुस्तकालय
- विद्युत शवदाह गृह
- राजकीय अतिथि गृह
- राजकीय रोडवेज बस स्टैंड
- सामुदायिक विकास केंद्र
- नियमित विद्युत आपूर्ति
- औद्योगिक इकाइयाँ
- रोज़गार सूचना केंद्र
- पर्यटन केंद्र
- गंगा किनारे पक्के घाट
- राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय
- हाट एवं सब्ज़ी मंडी
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